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बेरिया डुबन लगल, फूलल झिगनियाँ / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बेरिया<ref>वेला। मुहा. बेर डुबल = सूर्यास्त हुआ</ref> डुबन लगल, फूलल झिगनियाँ<ref>झिगनी = एक तरकारी विशेष</ref>।
आजु मोरा अइह धानि, हमर कोहबरिया॥1॥
कइसे के अइयो<ref>आऊँ</ref> प्रभु, तोहरो कोहबरिया।
अँगना में हथु<ref>है</ref> सासु मोर रे बयरनियाँ<ref>बैरिन, दुश्मन</ref>॥2॥
सासुजी के दिहऽ धानि, दलिया<ref>दाल</ref> आउ भतवा।
चुपके से चलि अइहऽ हमर कोहबरिया॥3॥
कइसे के अइयो परभु, तोहरो कोहबरिया।
ओसरा<ref>बरामदा</ref> में हथु गोतनी मोर रे बयरिनियाँ॥4॥
गोतनी के दिहऽ तूँ भरि के चिलिमियाँ<ref>चिलम, मिट्टी का कटोरीनुमा पात्र, जिस पर तम्बाकू रखकर पीते हैं</ref>।
चुपके से आ जइहऽ हमर कोहबरिया॥5॥
कइसे के अइयो परभु, तोहर कोहबरिया।
बाहरे खेलत हथु, ननदी बयरनियाँ॥6॥
ननदी के दिहऽ धानि, सुपती मउनियाँ<ref>बच्चों के खेलने योग्य बाँस की बनी बटरी, डलिया आदि</ref>।
चुपे चुपे चलि अइहऽ हमरो कोहबरिया॥7॥
कइसो के अइयो परभु, तोहर कोहबरिया।
मुसुकत खाड़े हथु देवर बयरनियाँ॥8॥
देवर के दिहऽ धानि, खइनियाँ<ref>खैनी, तम्बाकू</ref> आउ चुनमा।
चुपके से चलि अइहऽ, हमरो कोहबरिया॥9॥

शब्दार्थ
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