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बेर कहाँ हैं झरबेरी के / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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बाल वीर या पोगो ही,
देखूंगी, गुड़िया रोई।
चंदा मामा तुम्हें आजकल,
नहीं पूछता कोई।

आज देश के बच्चों को तो,
छोटा भीम सुहाता।
उल्टा चश्मा तारक मेहता,
का भी सबको भाता।
टॉम और जेरी की जैसे,

धूम मची है घर में।
बाल गणेशा उड़ कर आते,
अब बच्चों के मन में।
कार्टून की गंगा में अब,

बाल मंडली खोई।
टू वन जा टू का ही टेबिल,
बच्चे घर-घर पढ़ते।
पौआ अद्धा पौन सवैया,
बैठे कहीं दुबक के।

क्या होते उन्नीस, सतासी,
नहीं जानते बच्चे
हिंदी से जो करते नफ़रत,
समझे जाते अच्छे।
इंग्लिश के आंचल में दुबकी,

हिंदी छुप-छुप रोई।
आम नीम के पेड़ों पर अब,
कौन झूलता झूला।
अब्बक दब्बक दाँय दीन का,

खेल जमाना भूला।
भूले ताल तलैया सर से,
कमल तोड़कर लाना।
भूले खेल-खेल में इमली,

बरगद पर चढ़ जाना।
बेर कहाँ हैं झरबेरी के?
न ही पता मकोई।