भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बोलो / महेश वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम उससे कम चुप्पी वास्तव में अपने लिए चाहते है जितने की इच्छा करते हम दिखाई देते हैं ।
कोलाहल हमें मृत्यु के विचार से दूर रखता है ।
सच तो ये है कि चुप्पी को न वस्तुओं की ज़रूरत होती है न जंतुओं की ।
लंबा एकांत पहले हमारे सपनों पर अन्धकार की तरह उतर आता है फिर हमें मदद करता है कि हम अपना चेहरा याद रखने की ज़रूरत ही न समझें ।
कई बार बे-ज़रूरत भी कुछ बोल पड़ना चाहिए, भले ही इससे हमारी छवि थोड़ी बिगड़ती हो ।