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बौड़म / शंख घोष / सुलोचना वर्मा / शिव किशोर तिवारी
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ख़ूब भले बचे अपन
क़िस्मत ही अच्छी है,
धोखे की दुनिया में
आँखों पे पट्टी है।
किसी को छू लेता हूँ,
पूछता हूँ यारा,
“गली-गली फिरता है
क्यों मारा-मारा?
इससे भला था, सब
परपंच भुलाकर
एक बार बेपरवा’
हँसता ठठाकर।“
सुनकर वे कहते हैं
“कौन मनहूस है?
छुपा-छुपा फिरता है
निश्चय जासूस है।“
हद्द ! बोले कल के
वो छोकरे चिल्लाकर
‘बौड़म’, हमाई ओर
उँगली उठाकर।
बस, तब से बौड़म बन
श्याम बाज़ार के
आसपास रहता हूँ
वही रूप धार के।
मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा और शिव किशोर तिवारी
(‘आदिम लतागुल्ममय' (1972) नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - बोका)