भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भर गया गगन में धुआँ / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो था, सब हम ने मिटा दिया
इस आत्मतोष से भरे कि उस के हमीं बनाने वाले हैं
भर गया गगन में धुआँ हमारे कहते-कहते :
'स्वर्ग धरा पर हम ले आने वाले हैं!'

टॉटनेस, लंदन, 19 अगस्त, 1955