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भारत हो वैभव शाली / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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सुन्दर है इस देश की धरती
सुन्दर इसकी हरियाली
फूल खिले हैं रंग-रंग के
साड़ी है शोभा शाली
लिये गोद में मुस्काती है
शिशु वसन्त को यह बाला
वासन पहनकर नव पल्लव के
क्यारी की पहली माला
बहती शीत मंद पवन है
सुख सुगन्ध लाने वाली
फूलों को हंसता देखा तो
नभ में कोई मुसकाया
भौंरो ने भी अठखेली कर
गुनगुन कर गाना गया
तितली-सी नव बाला सुन्दर
रंग भरे पंखों वाली
स्वस्थ श्वेत बैलों की जोड़ी
लिए कृषक मन फूल रहा
भाँति भाँति की भाव कल्पना
में उसका मन झूल रहा
गा गा कर लो फसल काटती
वासन्त चुनार वाली।
जाने कितनी मधुर निर्झर
धरती के उर में फूटे
कटुता रह न सकेगी विष के
भरे हुये मटके फूटे
इक लौ जले सभी के उर में
भारत हो वैभवशाली