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भाव अर्पण जहाँ / प्रेमलता त्रिपाठी

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भाव अर्पण जहाँ किया होगा।
प्रीत हाला वहीं पिया होगा।

जीव आत्मा मिलन तभी संभव,
अंतिका ने शरण लिया होगा।

है निभाना सरल न रिश्तों को,
त्याग सेवा सहित जिया होगा।

बोल मीठे सुना न जिसने वह,
होंठ अपने सदा सिया होगा।

डूबते हम वहीं भँवर में यदि,
साध्य जीवन नहीं दिया होगा।

प्रेम बाधा मिटे सुगम पथ हो
ज्ञान दर्पण सदा हिया होगा।