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भूमिका-डॉ कुंअर बेचैन / अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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            अपने में अकेला और एकदम खरा है कवि
            वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ जी का यह संग्रह'

कविता मन के सन्नाटे में आत्मा की लयवंती गूंज की सहज अनुपम और मनोरम स्वर-लहरी है । यह स्वर-लहरी कभी गीत, कभी ग़ज़ल और कभी किसी अन्य विधा में आकार लेकर प्रस्फुटित होती है । इन दिनों लगभग सभी कवि अपनी बात को ग़ज़ल जैसी सशक्त विधा में अभिव्यक्त कर रहे हैं । इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ग़ज़ल विधा की अपनी मोहक छवि तो है ही लेकिन दूसरा कारण भी है और वह यह है कि आज के समय में अन्य सामाजिकों की तरह कवि का अपना जीवन भी बहुत व्यस्त हो गया है । उसे आज पहले जैसी एकाग्रता और तन्मयता नहीं मिल पा रही है । उसको अपने लिए भी समय टुकड़ों-टुकड़ों में ही मिलता है और ग़ज़ल में दोहे की तरह अपने विचारों को टुकड़ों-टुकड़ों में कहने की सुविधा है ।.......और यह सुविधा इसलिए है क्योंकि उसका प्रत्येक शेर स्वतंत्र हो सकता है और यह एक शेर ही पूरी बात कहने में समर्थ भी होता है । अतः आज का कवि या तो दोहा लिख रहा है या ग़ज़ल ।

अगर परिमाण की दृष्टि से देखा जाये तो आज की हिन्दी कविता की प्रमुख धारा ग़ज़ल ही है । हिन्दी कविता के क्षेत्र में इन दिनों जितने भी रेखांकित करने योग्य कवि हैं उनमें से अधिकतर कवियों ने ग़ज़लें कही हैं और जिन्होंने ग़ज़लें कही हैं उनमें जो प्रमुख ग़ज़लकार हैं उनमें श्री वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ का नाम बिना किसी हिचक के लिया जा सकता है । इसका बड़ा कारण यह है कि ‘अकेला’ जी की ग़ज़लें विविध विषयों पर होने के साथ-साथ बहर आदि की दृष्टि से भी निष्कलंक हैं । उनमें सहज प्रवाह भी है और अमिट प्रभाव भी । ये ग़ज़लें ग़ज़ल की यशस्वी परंपरा में रहकर नए विषयों तथा नए प्रतीकों की खोज भी करती दिखाई देती हैं । इनमें यथार्थ की सच्चाई और कल्पना की ऊँचाई दोनों के ही दर्शन होते हैं । ग़ज़ल का शेर अगर एकदम दिल में न उतर जाये तो वह शेर ही क्या। ऐसे दिल में उतर जाने वाले अनेक शेर इस संग्रह में मिलेंगे । मिसाल के तौर पर एक ग़ज़ल के मतले का यह शेर ही देखें -

     “अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं
      न जाने लोग भी क्या-क्या अदाकारी दिखाते हैं ।”

और यह दिखावा ही आज के व्यक्ति की असली शख्सियत बन गई है । तभी तो सारी दुनिया में यह हो रहा है कि-अम्न की चाहत यहाँ है हर किसी को /हर कोई तलवार पाना चाहता है । सचमुच आज सारे संसार में हिंसा का ही बोलबाला है । लोगों की नस-नस में झूठ और मक्कारी भरी हुई है । यह गुण भी लोगों ने सियासतदारों से ही सीखा है इसी कारण ‘अकेला’ जी गुस्से में बोलते हुए कहते हैं-

“झूठ मक्कारी तजें नेता जी मुमकिन ही कहाँ
नाचना, गाना-बजाना कैसे किन्नर छोड़ दे ।”

इतनी कड़वी बात करते हुए कभी वे अपने आप को समझाते भी हैं- “ऐ अकेला दुनिया भर से मोल मत ले दुश्मनी/हक़बयानी छोड़ दे ये तीखे तेवर छोड़ दे ।” और आगे चलकर यह भी कहते हैं कि-“सच्चाई की रखवाली को निकले हो/सीने पर गोली खाने का दम रखना ।” कवि पूरी चेतना और हिम्मत के साथ फिर भी सच्चाई को कहते हुए नहीं घबराता क्योंकि उसका विश्वास है कि जब तक ईश्वर साथ है कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता और डरा भी क्यों जाये क्योंकि हम तो इंसान हैं जबकि-“ करो मत फ़िक्र वो दो वक्त की रोटी जुटा लेगा/परिंदे भी ‘अकेला’ चार दाने ढूंढ़ लेते हैं ।”
अकेला जी अकेले नहीं हैं जो आज के परिवेश की विडम्बनाओं और विदू्रपताओं से परेशान हैं वरन उनका दर्द सारे समाज का दर्द हैक्योंकि कवि सारे समाज का दर्द अपना दर्द बनाकर बयान करता है और अपने दर्द को इस तरह कहता है कि उसे समाज के अधिकतर लोग अपना दर्द महसूस करते हैं । ‘अकेला’ जी का पूरा नाम वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ है और इसीलिए अपने नाम के अनुकूल ही उनकी ग़ज़लों के अशआर एकदम खरे हैं । उनमें कहीं भी खोट नहीं है । वीरेन्द्र जी के इस संग्रह से पूर्व दो और संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं । एक का नाम है-‘शेष बची चौथाई रात’ और दूसरे का नाम ‘सुबह की दस्तक’ । सच तो यह है कि शेष बची चौथाई रात के बाद जो सुबह की दस्तक हुई और उसके साथ जो शबनम की बूंदें आईं वे फूलों पर तो पड़ीं ही साथ ही उन्होंने अंगारों पर भी बिखरने का काम किया और सच्ची कविता ‘अंगारों पर शबनम’ बरसाने का ही काम करती है । खासकर ग़ज़ल तो है ही प्यार-प्रेम की भाषा । कवि वीरेन्द्र खरे जी ने तीसरी पुस्तक का नाम अपनी पहली दो पुस्तकों के क्रम में ‘अंगारों पर शबनम’ ठीक ही रखा है क्योंकि इस संग्रह की ग़ज़लों में यदि कुछ अंगारे दर्शाए गए हैं तो उन पर शबनम बिखेरने का काम भी ये ग़ज़लें कर रही हैं ।

साहित्य के उद्देश्य का समुचित रूप से परिपालन करने वाली ग़ज़लों के इस महत्वपूर्ण संग्रह के प्रकाशनोत्सव पर मैं श्री वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ जी को अपनी शुभकामनाएँ देने के साथ साथ ये आशा भी करता हूँ कि वे इसी प्रकार के अच्छे संग्रह पाठकों के सामने लाते रहेंगे और पाठकों का प्यार और सराहना पाते रहेंगे ।

'-कुँअर बेचैन'
2 एफ-51, नेहरू नगर
गाजियाबाद (उ.प्र.)