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भोथरा-सुख / मंजुला बिष्ट

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क्यों नहीं भोथरे हो जाते हैं
ये हथियार,बारूद व तीखें खंजर
जैसे हो गई है भोथरी
धूलभरे भकार में पड़ी हुई
मेरी आमा की पसन्दीदा हँसिया!

पूछने पर मुस्काती आमा ने बताया था
कि अब कोई चेली-ब्वारी जंगल नहीं जाती
एलपीजी घर-घर जो पहुँच गई है

क्या अभी तक हम नहीं पहुँचा सकें हैं
रसद और वे सभी जरूरी चीजें
जो एक आदमी के जिंदा बने रहने को नितांत ज़रूरी हैं
जो ये हथियार अपने पैनेपन के लिए
बस्तियों पर गिद्ध दृष्टि गड़ाए बैठे हैं

क्यों नहीं
कोई आमा के पास बैठकर
अपने हथियार चलाने के कौशल को
भूलकर सुस्ताता है कुछ देर
और समझ लेता है
एक हँसिया के भोथरे हो जाने के पीछे का निस्सीम-सुख

क्या हथियार थामे हाथ नहीं जानते हैं सच
कि हत्थे पर से नहीं मिटती है रक्तबीज-छाप
हथियारे की

हथियारों से टपकती नफ़रतें
चूस लेती हैं सारा रक्त
राष्ट्र की रक्तवाहिनियों से;
हथियार अगर सन्तुष्ट होकर लुढ़क भी जाएं
एक खाये-अघाये जोंक की मानिंद
तो रक्तवाहिनियों में निर्वात भर जाता है

येन-केन प्रकारेण
अपने हथियारों के बाजार बढ़ाते देशों के लिए
आख़िर यह समझना इतना कठिन क्यों है कि
दुनिया के सारे हथियारों की अंतिम जगह
मेरी आमा का धूलभरा भकार है।