भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोपालःशोकगीत 1984 - कुछ दिनों बाद / राजेश जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ दिनों बाद वहाँ घास उग आयेगी
कुछ दिनों बाद मिट्टी कड़ी हो जायेगी वहाँ
नमक और फास्फोरस की मात्रा बढ़ जायेगी
जहाँ दफ़नाए गए थे
दो दिसम्बर की रात मारे गए लोग !

दुख पर धीरे-धीरे धूल की कई तहें
जम जायेंगी और यादों पर
कई और दुखों की

कुछ दिनों बाद लोग घटना पर बात करने से
बचेंगे एक दूसरे से और सोचेंगे
कि याददाश्त कमजोर होती है लोगों की

कुछ दिनों बाद बिना पहचान वाले
मृतकों का पोस्टर
कहीं नहीं दिखेगा शहर में !