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भोर भेलै पोह फाटलै, चिरैया एक बोलै हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

निःसंतान स्त्री पुत्र की कामना से पंडित को बुलवाकर ग्रह-नक्षत्रादि दिखलाती है; लेकिन पंडित ग्रह-दशा देखकर कहता है कि तुम्हें कभी पुत्र की प्राप्ति नहीं होगी। निराश होकर वह भगवान सूर्य की आराधना करती है। भगवान भास्कर की अनुकंपा से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। उसकी सास, ननद, आदि जो उसपर हमेशा व्यंग्य-बाण की वर्षा किया करती थीं, अब वही गाने-बजाने लगती हैं तथा घर का सारा वातावरण आनन्दमय हो जाता है। पुत्रवती स्त्री लड़के की ग्रह-दशा की गणना के लिए पंडित को बुलवाती है। लेकिन, पंडित को उसकी भविष्यवाणी की याद दिलाने से भी नहीं चूकती और उसे कह देती है कि तुम्हें प्रणाम कैसे करूँ, तुम्हारी बातों से मेरे कलेजे में रह-रहकर हूक उठती रहती है।

भोर भेलै पोह फाटल, चिरैया एक बोलै हे।
राजा, छोड़ी देहो हमरो अँचरवा, सरमियाँ हमरो लागत हे॥1॥
किए तोरा सासु जगावै, ननदी बोल बोलै हे।
धनि, किए तोरा गोद में बलकबा, कि गोद लेके बैठब हे॥2॥
नहिं मोरा सासु जगाबै, ननद बोल बोल हे।
पियबा, नहि मोरा गोदी बलकबा, कि गोद लेके बैठब हे॥3॥
घर पिछुअड़बा में बिपर<ref>विप्र; ब्राह्मण</ref>, सगुन के पोथिया उलटाय<ref>उलट दो; खोलो</ref> देहो, संतति कहिया<ref>कब</ref> होएत हे॥4॥
पुरुब के चाँन पछिम होएत हे।
रानी, संतति के मुँह नहीं देखब, संतति तोरा नहीं होएत हे॥5॥
खोंयछा भरि लेलिऐ<ref>ले लिया</ref> तिलचौरी<ref>तिल और चावल</ref>, त अदित मनाबली, सुरुज मनाबली हे।
ये अदित, हमरा पर होबहो दयाल, संतति कहिय होएत हे॥6॥
एक बोली मारै<ref>मारना है</ref> सासु मोरा, दोसरा ननद मारै हे।
अदित, तेसर बोली मारै पुरुखबा, सहलो नहीं जाइछै हे॥7॥
नव महिनमा जब बितलै, कान्ह अवतार लेलकै हे।
रामा, बाजे लागल आनंद बधाबा, महल उठै सोहर हे॥8॥
घर पिछुअड़बा में बिपर, त बेगि चलि आबहु हे।
बिपर, तोहर बोलिया सालै छै करेजवा, त गोड़ तोरा कैसे क लागि हे॥9॥

शब्दार्थ
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