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भौमासुर को जानते हो? / संजय तिवारी

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तुम आधी रात को
सद्यः प्रसूता पत्नी से छिप कर निकल गए
जीवनसाथी को पीड़ा में डाल
समाज की अनकही पीड़ा में पिघल गए
डर कर गए या दर्द से मैं नहीं जानती
 तुम्हें कोई पीड़ा थी? मैं नहीं मानती
मैं पत्नी थी और साथ में तुम्हारा ही अंश था
गौतम! राहुल तुम्हारा ही वंश था
भौमासुर को जानते हो?
सत्यभामा को पहचानते हो?
जीवन को जीवित मानते हो?
यह सन्दर्भ पुरातन भी है नया भी
नरकासुर आया भी और गया भी
उधर रावण का हुआ था नाश
इधर सीता के उद्भवस्थल के ही पास
पैदा हुआ था सृष्टि के लिए यह नया सौदा हुआ था
सोलह साल तक जनक ने ही इसे पाला था
पृथ्वी ने स्वयं आँचल में डाला था
प्राग्ज्योतिषपुर का यह अधिपति
विदर्भकन्या माया का बना पति
आदत से बहुत था खराब
नहीं था उसके अत्याचारों का हिसाब
 देवताओं का वध
कन्याओं का बलात्कार
बढ़ता ही गया दुराचार
वानर द्विविद और
मथुरा के राजा कंस का असुर असुर मित्र
खींच दिए थे इसने अनाचार के अनगिनत चित्र
सोलह हजार कन्याओ को बना लिया था बंदी
राक्षस की हर हरकत थी गन्दी
इंद्र को भी जीत चुका था
संतो को पीट चुका था
सोचो कितना ख़राब था वह काल
कृष्ण के समय भारत का था यह हाल
कंस से कुरुक्षेत्र तक अत्याचार का राज था
कराह रहा समाज था
कृष्ण ने अपनी पत्नी को साथ लेकर लड़ा था युद्ध
न भगवान थे न बुद्ध
सोलह हजार कन्याओ को पत्नी बना कर
दिया था सामाजिक संरक्षण
असुरों को नहीं करने दिया
उनकी मर्यादा का भक्षण
सत्यभामा के साथ
कृष्ण ने स्वयं थाम लिया
सभी असुरक्षित कन्याओं का हाथ
वह कृष्ण थे जिन्होंने कन्याओं को
पत्नी के साथ मिल कर पत्नी का दिया सम्मान
बचायी उनकी मर्यादा
सामाजिक चादर उन्हें ओढ़ा दिया
विरह की पीड़ा में ज्ञान योग पढ़ा दिया
किसी को छोड़ा नहीं
केवल अंगीकार किया
उनकी संवेदना को स्वीकार किया
नरकासुर का अंत और कन्याओं की मुक्ति
इसे ही कहते है पौरुष और शक्ति
तुम पत्नी त्याग कर पाने निकले ज्ञान
सोलह हजार पीड़ित तिरस्कृत बहिष्कृत
कन्याओ को पत्नी बनाकर
 कृष्ण बन गए भगवान्
इसीलिए तुम्हें अतीत से जोड़ रही हूँ
हाँ! मैं यशोधरा बोल रही हूँ।