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मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ? / राजा पुनियानी

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गोरखालैंड के लिए शहीद होने वाले मंगलसिंह राजपूत के नाम...

मंगलसिंह,
तेरे जवान शरीर की
सौ साल बुड्ढी आग देख
अपने हक़ की पेशाब कर रहा है मँझला

मंगलसिंह, कौन सा है तेरी आग का देश ?
मंगलसिंह, तेरी आग के चप्पल का ब्राण्ड क्या है?
मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?
इस आग का नाम क्या है ?
पूछ रहा है कार्पोरेटों से कुचला गया एक देश ।

उपनिवेशवादी रामराज्य में
तेरी आग का दाम
सस्ता है उस तेल के दाम से
जिसे तूने अपने शरीर पर उँड़ेल दिया था ।

तेरी आग के चेहरे में
लटक रही है एक सपने की सरकारी हड्डी ।
तेरी आग के मुँह से सट के खड़ा है
गुस्सैल आँधी का गीत ।

मंगलसिंह, इस बार तुझे देख कर
बुद्ध एक कुएँ का नक्शा आँक रहा है
हिटलर के हाथ से गिर चुकी है तानाशाही कारतूस
गाँधी ने थोड़ी-सी ऊपर उठा दी है अपनी नैतिकता की धोती ।

अब जा के मंगलसिंह
तूने एक धक्का दे दिया है
जो आज तक न दिया गया मानचित्र के पथरीले दरवाज़े पर ।

तेरी चीत्कार सुन कर इस बार
खुजला रही है तीस्ता
पुराने भूगोल का दाद
रह-रह कर ख़ून बह रहा है जहाँ से ।

मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?
संविधान की मकड़ी का मूता हुआ
तेरा इकतारा भुंड़ी में
बजाता रहता है तेरी ज़िद्दी आवाज़ -- सुन रहा है ना तू !

मंगलसिंह, तेरी आग के हाथों से
पकड़ रखी है तूने
इतिहास की पहेली की चालाक पूँछ ।
दिल्ली जाने वाली रेल का टी० टी० ई० माँग रहा है
तेरी आग का वोटर आई०डी०...

जिन पदचिह्नों का पीछा कर रहे हैं तेरे आग के पैर
वे मुक्ति के हैं या मृगतृष्णा के ?
मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?

चाट दे तू आग की जीभ से
छली गर्भधारण की ख़बर-खेल को
मंगलसिंह, अब तो उतार दे अपनी आग का कवच...
मंगलसिंह, तेरी आग की जीभ कहाँ है ?


मूल नेपाली से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा