भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंच और जीवन / हाइनर म्युलर / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंच पर हैमलेट था
फिर ओफ़ेलिया आई

डारयेक्टर की हिदायत के मुताबिक
उसे हंसना था
वह हंस दी
 
मैंने देखा —
उसके दाँत बेतरतीब थे
 
डायरेक्टर को बहुत कुछ कहना था
हैमलेट और ओफ़ेलिया ने काफ़ी कुछ कहा
कुछ-कुछ मैं समझता भी रहा
होना या न होना यही था सवाल

और फिर मैं भूल गया
बाहर निकलने के बाद
सिर्फ़ इतना याद रहा :
ओफ़ेलिया के दाँत बेतरतीब थे

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य