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मंधाराम! / असंगघोष

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वो जे.बी. मंघाराम नहीं था
ग्वालियरवाला
जैसा छपा रहता था
बिस्किट के डिब्बे पर
मंघाराम का नाम-पता
वैसा हरगिज नहीं
वह केवल मंघाराम था
लिखता था गणित के
अनेकानेक फार्मूले
कभी सड़क पर
कभी सफेदझक दीवार पर
कोयले की कालिख से
जिसे वही समझता रहा
मैं गणित में फेल कभी भी
उसका कोई फार्मूला नहीं पढ़ पाया
समझना तो दूर रहा
कहते हैं
मंघाराम के फार्मूले में
उसकी बीवी थी,
बच्चे थे
जिन्हें वही देख पाता था
बैठे हुए अपने फार्मूलों में
बीवी-बच्चे बिछड़ गए थे
बँटवारे में
उन्हें खोजते-खोजते
वह भूल गया था उनके नाम
वह जो कुछ बोलता
उसे कहाँ कोई समझ पाता था
लेकिन याद था उसे
अपना एल्यूमिनियम का कटोरा
जिसे हम जर्मनी का कटोरा कहा करते थे
उसी में ही माँगता था
मंघाराम!
मोहल्ले भर से
जहाँ से जो कुछ मिलता
उसे खा लेता था,

बँटवारे के समय
बिछड़ गई पत्नी व बच्चों को
इधर-उधर खोजता

अपनी पत्नी व बच्चे
खोजता-खोजता विक्षिप्त-सा हो गया
मंघाराम

उसकी इस बेबसी पर
कभी कोई कहता
यह जो फेरीवाला है
उसकी बीवी ही थी मंघाराम की पत्नी
जिसे सामने आने पर भी
कभी वह पहचान नहीं पाया
कभी कोई कहता
मेरे बाल मंदिर
जहाँ मैंने सीखा क ख ग
उसकी बुआजी थी उसकी पत्नी
कोई कहता नहीं था
यह बुआजी उसकी पत्नी
मेरा बाल मन
नहीं समझ पाया
किसी के कुछ खोने का दर्द!

ऐसे ही
खोजते-खोजते
अपनी पत्नी व बच्चे
एक दिन मेरे गाँव का मंघाराम नहीं रहा
चल बसा
किन्तु जेबी मंघाराम
अब भी बना रहा है
बिस्किट
बेच रहा है
लाल डिब्बे में बन्द कर।