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मतलब के लिए हैं न मआनी के लिए हैं / 'महताब' हैदर नक़वी

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मतलब के लिए हैं न मआनी के लिए हैं
ये शेर तबीअत की रवानी के लिए हैं

वो चश्म अगर सेहर-बयानी के लिए हैं
ये लब भी मेरी तिश्ना-दहानी के लिए हैं

जो मेरे शब ओ रोज़ में शामिल ही नहीं थे
किरदार वही मेरी कहानी के लिए हैं

ये दाग़ मोहब्बत की निशानी के अलावा
ऐ इश्क़ तेरी मर्सिया-ख़्वानी के लिए हैं

आती है सुकूत-ए-सहर-ओ-शाम की आवाज़
दर-अस्ल तो हम नक़्ल-मकानी के लिए हैं

जो रंग गुल ओ लाला ओ नस्रीं से हैं मंसूब
वो रंग अब आशुफ़्ता-बयानी के लिए हैं