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मतलब के लिये हैं न मानी के लिये हैं / 'महताब' हैदर नक़वी
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मतलब के लिये हैं न माअनी के लिये हैं
ये शेर तबीयत की रवानी के लिये हैं
ओ चश्म अगर सहर-ए-बयानी1 के लिये है
ये लब तो मेरी तश्नादहानी के लिये हैं
जो मेरे शब-ओ-रोज़ में शामिल भी नहीं थे
किरदार वही मेरी कहानी के लिये हैं
ये दाग़ मोहब्बत की निशानी के अलावा
ये इश्क़ तेरी मर्सिया-ख़्वानी2 के लिये हैं
आती है सुकूत-ए-सहर-ओ-शाम3 की अवाज़
दरस्ल तो हम नक़्ल-ए-मकानी4 के लिये हैं
जो रंग गुल-ओ-लाला-ओ-नसरी5 से थे मन्सूब6
वो रंग अब आशुफ़्ता-बयानी के लिये हैं
1-बात-चीत का जादू 2-शोक गीत का पाठ 3-सुबह और शाम की चुप्पी 4-स्थानानतरण 5-अलग-अलग फूलों के नाम 6-सम्बन्धित