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मन रे रो-रो कर गा ले / जनार्दन राय

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मन रे रो-रो कर गा ले।
नृत्य लहरें करती गा-गा,
उछलती गिरती सुख पा-पा।
विहंसती बढ़ती जाती है,
मगर तू किस्मत पर रो ले।
मन रे रो-रो कर गा ले।

विहंसते रवि छोड़े आकाश,
रंगते जग की सारी आश,
मगर तुमने खोया उल्लास,
अपने दुर्दिन पर रो ले।
मन रे रो-रो कर गा ले।

आयी मधुर मिलन की रात,
जिसमें तारों की बारात,
हो न पायी दिल की कुछ बात,
नयन से आँसू बरसा ले,
मन रे रो-रो कर गा ले।

माघ के बीत गये भिनुसार,
जेठ के ताप होा गये छार;
उमड़ती सावन की शुचि धार,
मगर तुम विरह-गीत गा ले।
मन रे रो-रो कर गा ले।

देख ले स्वर्णिम सुखद प्रभात,
जग की आशा के ये प्रात,
व्यर्थ तेरे जीवन दिन-रात,
अपने कर्मों पर रो ले।
मन रे रो-रो कर गा ले।

दृष्टि डाली जग-उपवन ओर,
निहारो सुन्दरता के छोर,
न लेना खिलते फूलें तोर,
निराशा पर ही पछता ले।
मन रे रो-रो कर गा ले।

देख ले जग का मुस्काना,
मस्त मानव का इतराना,
खुशी के गीत कभी गाना,
अभी तुम ठोकर कुछ खा ले।
मन रे रो-रो कर गा ले।

-डुमरिया खुर्द,
31.5.1954