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मर मर कर जीना छोड़ दिया / फ़रहत शहज़ाद

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मर मर कर जीना छोड़ दिया
लो हमने पिना छोड़ दिया

खाबों के खयाली धागों से
ज़ख्मों को सीना छोड़ दिया

ढलते ही शाम सुलू होना
हमने वो करीना छोड़ दिया

तूफ़ान हमे वो रास आया
के हमने सफीना छोड़ दिया

मय क्या छोड़ी के लगता है
 जीते जी जीना छोड़ दिया

'शहज़ाद' ने ख़्वाबों में जीना
ऐ शोख़ हसीना छोड़ दिया