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मसोस / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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कलेजा मेरा जलता है।
याद में किसकी रोता हूँ।
अनूठे मोती के दाने।
किसलिए आज पिरोता हूँ।1।

फूल कितने मैंने तोड़े।
बनाता हूँ बैठा गजरा।
चल रहा है धीरे धीरे।
प्यार दरिया में दिल बजरा।2।

चुने कोमल कोमल पत्ते।
अछूते फल मैंने बीछे।
न जाने क्यों कितनी चाहें।
पड़ गयी हैं मेरे पीछे।3।

सामने हुए रंगरलियाँ।
रंगतें क्यों दिखलाता हूँ।
देख कर के खिलतीं कलियाँ।
किसलिए मैं खिल जाता हूँ।4।

चित हरने वाली छवि से।
पेड़ की हरियाली बिलसी।
बलाएँ किस की लेने को।
बेलि अलबेली है बिकसी।5।

फबन से बड़ी फबीली बन।
हँस रही है फूली क्यारी।
क्यों बहुत ही मीठे सुर से।
गा रही हैं चिड़ियाँ सारी।6।

लहक हैं रही सिंची दूबें।
हवा है महँक भरी बहती।
भँवर की गूँज कान में क्यों।
अनूठी बातें हैं कहती।7।

उमंगें छलकी पड़ती हैं।
दिन बहुत लगता है प्यारा।
जोहता है किसकी राहें।
जगमगा आँखों का तारा।8।

देखता सपना हूँ किसलिए।
भाग मेरा ऐसा है कहाँ।
सदा ऊसर ऊसर ही रहा।
मिली कब केसर क्यारी वहाँ।9।

कलेजा मेरा पत्थर है।
आँख का आँसू है पानी।
हवा बन जाती हैं आहें।
पीर क्यों जाये पहचानी।10।