भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मस्तिष्क में निठारी / जय राई छांछा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निठारी,
एक डरावनी काली सुरंग का नाम है
ऊपर से नीचे देखने पर डराने वाला पर्वत शिखर है
डर और त्रास के भयावह वातावरण के सृजन के लिए
स्वाभाविक रूप से उच्चरित स्थान है
और हरदम भयानक फण फैलाए
शांति का आडंबर ओढे चुपचाप बैठने वाले
एक छोटा लेकिन अजीब गाँव भी है ।

निठारी,
मानव जाति की नृशंस हत्या करता है
कंकालों को जोड़ कर बिछौना बनाता है
और फिर निश्चिंत कुंभकर्णीय् नींद में हो जाता है लीन
ड्राकूला समय का अनुवाद करते
उजाला और भविष्य का कठोर शत्रु बन
सदा चीत्कारों में डोलता है

निठारी में,
ह्रदय विहीन चट्टानों का है वास
आँखों से गिरने से पहले ही
निर्दोष् आँसू बन जाते हैं पत्थर
अमूक रुंख, पौधे और लताएँ
तमाशा देखने के सिवाय कुछ कर नहीं सकते
और निठारी में
लोगों से मानवता डरते हुए दूर-दूर भागती है
मानवता से ओत-प्रोत लोगों को
काली छाया बनकर दौडाता है निठारी

पाठको, आप में से किसी ने
पृथ्वी के मानचित्र में कहीं पर यदि
दिसंबर 2006 के बाद
काला धब्बा लगा हुआ देखा है
तो निश्चित ही वह निठारी ही होगा।


मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला