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मां सब कुछ कर सकती है / विष्णु नागर

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मां सब कुछ कर सकती है

रात-रात भर बिना पलक झपकाए जाग सकती है

पूरा-पूरा दिन घर में खट सकती है

धरती से ज्यादा धैर्य रख सकती है

बर्फ़ से तेजी से पिघल सकती है

हिरणी से ज्यादा तेज दौड़कर खुद को भी चकित कर सकती है

आग में कूद सकती है

तैरती रह सकती है समुद्रों में

देश-परदेश शहर-गांव झुग्गी-झोंपड़ी सड़क पर भी रह सकती है


वह शेरनी से ज्यादा खतरनाक

लोहे से ज्यादा कठोर सिद्ध हो सकती है

वह उत्तरी ध्रुव से ज्यादा ठंडी और

रोटी से ज्यादा मुलायम साबित हो सकती है

वह तेल से भी ज्यादा देर तक खौलती रह सकती है

चट्टान से भी ज्यादा मजबूत साबित हो सकती है

वह फांद सकती है ऊंची-से-ऊंची दीवारें

बिल्ली की तरह झपट्टा मार सकती है

वह फूस पर लेटकर महलों में रहने का सुख भोग सकती है

वह फुदक सकती है चिड़िया की मानिंद

जीवन बचाने के लिए वह कहीं से कुछ भी चुरा सकती है

किसी के भी पास जाकर वह गिड़गिड़ा सकती है

तलवार की धार पर दौड़ सकती है वह लहुलुहान हुए बिना

वह देर तक जल सकती है राख हुए बगैर

वह बुझ सकती है पानी के बिना


वह सब कुछ कर सकती है इसका यह मतलब नहीं

कि उससे सब कुछ करवा लेना चाहिए

उसे इस्तेमाल करनेवालों को गच्चा देना भी खूब आता है

और यह काम वह चेहरे से बिना कुछ कहे कर सकती है।