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मानवताक परिभाषा / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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विज्ञान पसरल
मानवता ससरल
बौद्धिक आड़ि मे
भौतिकताक जय
संस्कारक क्षय
सभ केँ देखि
कक्को केँ जगलनि
केम्पोस सिलेक्शनक भूख
अपना लेल नहि
टके सँ काबिल बनल बेटा लेल
डोनेशन द' क' अभियंता बनओने छलथि
नोएडा मे नौकरी भेंटलनि
साल मे सबा लाख पैकेज
आहि रौ बाप
दस लाख खर्चक बाद बनल
इंजीनियर केँ एतवे मानि
बतहा मोन मसोँसि केँ रहि गेल
किएक ने छोटके जकाँ पढ़लक?
ओहो नोएडा जाइते छल
भाग्यक कोनो दोख नहि
अपने कुरहरि सँ अपन भाग्य काटि नेने छल
आब दिन राति मेहनति
खेतपथार संग-संग मालजाल
मुदा ओकरे जीवन जंजाल
बापक मास्टरीक एक्को पाइ
 मुँह नहि देखि सकल
तीस लाख भेंटलनि कक्का केँ
जखन रिटायर भेल छलथि
पेंशन महक मूल पठा रहल छथि
छोटका केँ घरक खर्च लेल
बाउक अपन पैकेज जे!
घर-भाड़ा मे उड़िया जाइत छन्हि
बतहा बुड़िबक मुदा सब बूझि गेल
सुनैत-सुनैत गबदी टूटल
बाजि उठल बतहा
कतहु दरभंगे मे किएक नहि जोगार लगा देलियै ?
एहेन नौकरीक कोन काज
घरख़र्ची एहि ठाम सँ पठाओल जायत
चट्ट मुंह पर बापक थापर
बतहाक आँखि मे नोर नहि
मुदा! हिया कानि उठल
कनियाँक सोझाँ जे मारि खएलक
ओकरा लग फूसि बापक नजरि मे
अपन मोजर बघारैत छल
गराइन सँ जीवते मरि गेल
सुनैत रहल किछु नहि बाजल
रौ तोरा बिआह मे घर सँ टका लागल छल
देखिहनि बौआ केँ
कतेक टका भेटितै
ताहू पर ठाम गाम
तोरा जकाँ भदेश मे नहि
देखिते-देखिते काल बीतल
बौआक बिआह भेलनि
खुट्टी सन -सन एड़ी बला चप्पल पहिरने
नवकनिया अयलीह
हरिमोहनक ग्रेजुएट पुतोहुओ सँ
बेसी तामझाम बाली रहसल कनिया
बापक दूनमरी सँ बहसल कनिया
 ताहू टका द क' हुनक बाप
जे बौआ किनने छलथि
मेरे को तेरे को बाली कनिया
काटरक पाइक हिसाब माँगय लगलीह
बेसी बिआहे मे खर्च भ' गेल छल
जे किछु बचलनि ओहि धन पर
नवकनियाँक कब्जा
गामक लाइफ क्रिटिकल होइछ
हम नोएडा जायब
बौआ चुप छथि!
एक्के टा घर जे छन्हि ओहि ठाम
ओहो मात्र आठ गुनी आठ
नवकनियाक विचार सँ संस्कार सँ,
ड़रें बुरही भ' गेली काठ
"कोनो उपाय नहि सुझैत माय "
बाबूजी केँ कहिऔन टका देताह
आब नोएडा मे घर किनबाक अछि
एकटा लाचार बापक भविष्य
आर ओझरा देलनि बाउ
छन्हि " अंतिम सेविंग्स " पर धिआन
सुनैत-सुनैत नहि रहि भेल
बतहा फेर बाजल
किए नहि बाजत
ओकरो त' हिस्सा छैक?
 मुदा! की भेंटल हिस्सा मे?
बापक गारि- कनियाँक उपहास
सबल संतान लग बुड़िबकक कोन मोजर?
माय मंसोसि क' रहि जाइत छलीह
विश्वाश छन्हि हुनका
काज इएह देत
कोखि सँ जन्मलक गुण-दोख
माय सँ बेसी के बूझत?
बुरही पतिदेव केँ बतहो लेल सोचबाक
खोसामद करैत रहलीह
परंच! ओ नहि डोललथि
अभियन्ताक बाप कहेलहुँ
जकरा कारणे
कोना छोड़ि देब ओकरा
सभ टका " साहेब " लग चलि गेल
कम सँ कम पांच लाख द' दिऔ एकरा
छह बरखक बेटी छैक
बुरहीक गप्प झाऊँ- झाऊँ- जकाँ लगलनि
बतहा ! अंतिम चुप्पी तोड़ि देलक
कनिआँक संग पड़ा गेल
सासु-ससुर लग कलकत्ता
ससुर पुजेरी अछि ओहि ठाम
किछुए दिन मे कमब' लागल
बेटी सेहो अपना जोकरक स्कूल मे
आब अभियंता जीक गाथा
माय-बाप केँ बिसरि गेल छथि
नेनपनक जलखइ जकाँ
बाप लकबाग्रस्त भ' गेल छथि
फ़ोन भेलनि त'
छुट्टी नहि अछि
बुरहा केँ ल' क' आबि जाऊ की?
नहि एहि ठाम फ्लैट छोट छैक
नेंगराक बेटा केँ नौकर राखि ले माय
मास्टर साहेब कानि रहल छथि
एहेन मास्टरी कोन जोकरक
मानवता नहि चीन्हि सकलनि
अपगरानिक कोनो काज नहि
बतहा केँ फ़ोन करैत छी
बाप दहो -बहो
सुनलक बतहा
तुरते गाड़ी पकरलक
झटकल आयल
बाप केँ पकड़ि कानि रहल अछि!
तोरा मे कतेक मानवता छौ?
अहाँ एतेक पढ़ल -लिखल छी
मुदा!!" मानवताक परिभाषा"
नहि बूझि सकलहुँ बाबूजी
ई त' दोसराक लेल बनल शब्द छैक
हम मुरुख मुदा अहींक " बेटा "
मायक पीड़ा सँ उपजल संतान
हमरा लेल मानवता नहि "फ़र्ज़ "
हमर फ़र्ज़, अहाँक अधिकार
बाप स्तब्ध भ' गेल छथि
कपार शिक्षाक स्तर सुधरल
ई त, भ' गेल आर बेकार
मुरूखबे काज देलक
नहि बाबूजी शिक्षा जरूरी छैक
मुदा!!! संतान केँ संताने रहय दी
तखन! सोना मे सुगंध
अहाँ एकटा गलती केने छलहुँ
घूस देलाक बाद बनल इंजीनियर केँ
बेटा नहि बाप बना देलियै
मोन त' बढ़बे करतै ने
पुतोहुक संग पोती आबि रहल अछि
देख लेब अपन कुलक शिक्षा संस्कार
मुरुख बेटाक सिखायल आचार