भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माया नहीं मनुष्य / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हें माया नहीं
मनुष्य होना है स्त्री
देह से आजाद होना है
वह देह ही था
जिसके कारण बन्दिनी रही तुम
जादुई महलों और तहखानों में
और मर-खप गये
अनगिनत गरीब चरवाहे
गाते हुए तुम्हें अपने गीतों में
तुमने सीखा ही नहीं जमीन पर
चलना
बस उड़ती रही पतंग की तरह
उनके इशारे पर
और जब कटी तो खत्म हो गयी
जाने क्यों लता कहलाना
इतना भाता है तुम्हें
कि चढ़ भी नहीं पाती
बिना सहारे एक इंच भी
तुम्हें उबरना ही होगा
जादुई फूलों और राजकुमारों के
मोह से
और इस देह से।