भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिस्टर के की दुनिया: पेड़ और बम-२ / गिरिराज किराडू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब कुछ अभिनय हो सकता था
लेकिन किसी दुकान के शटर से किसी कब्र की मिटटी से किसी दुस्स्वप्न के झरोखे से
खून के निशान पूरी तरह मिटाये नहीं जा सकते थे

खून के निशान हत्या करने के अभिनय को हत्या करने से फ़र्क कर देते हैं