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मीत मन से मन मिला तू और स्वर से स्वर मिला / मृदुला झा
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कामना साकार करने का हमें अवसर मिला।
मातृ भू पर सिर झुका और याद रख इस सत्य को,
जो मिला अब तक हमें सत्कर्म के बल पर मिला।
थीं हमारे बीच जो भी पल रही कड़वाहटें,
भूल जा उस तिक्त क्षण को हाथ तू आकर मिला।
हों प्रफुल्लित लोग जग में है हमारी कामना,
जो मिले सबको मिलाले सोच मत क्यों कर मिला।
दूर बैठे ढूंढते हो प्यार का संसार तुम,
है हमारे बीच जो भी साथ रहकर ही मिला।
तुम को हाथों की लकीरों से नहीं शिकवा ‘मृदुल’
आज तक जो भी मिला उम्मीद से बढ़कर मिला।