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मुँहचोर / हरिऔध

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हम नहीं हैं कमाल वाले कम।
लोग हममें कमाल पाते हैं।
कुछ चुराते नहीं किसी का भी।
पर सदा मुँह हमीं चुराते हैं।

वे अगर हैं चतुर कहे जाते।
ए बड़े बेसमझ कहायेंगे।
जब कि चितचोर चित चुराते हैं।
क्यों न मुँहचोर मुँह चुरायेंगे।

तब उसे सामना रुचे कैसे।
जब रही लाज की लगी डोरी।
है लटे चित्त की लपेट बुरी।
चूक की है चपेट मुँहचोरी।