भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक़ाबला-ए-हुस्न / फ़हमीदा रियाज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कूल्हों में भँवर जो हैं तो क्या है
सर में भी है जुस्तुजू का जौहर
था पारा-ए-दिल भी ज़ेर-ए-पिस्ताँ
लेकिन मिरा मोल है जो इन पर
घबरा के न यूँ गुरेज़-पा हो
पैमाइश मेरी ख़त्म हो जब
अपना भी कोई उज़्व नापो !