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मुक्तादल जल बरसो, बादल, / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

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मुक्तादल जल बरसो, बादल,
सरिसर कलकलसरसो बादल!

शिखि के विशिख चपल नर्तन वन,
भरे कुंजद्रुम षटपद गुंजन,
कोकिल काकलि जित कल कूजन,
सावन पावन परसो, बादल!

अनियारे दृग के तारे द्वय,
गगन-धरा पर खुले असंशय,
स्वर्ग उतर आया या निर्मय,
छबि छबि से यों दरसो, बादल!

बदले क्षिति से नभ, नभ से क्षिति,
अमित रूपजल के सुख मुख मिति,
जीवन की जित-जीवन संचिति,
उत्सुख दुख-दुख हरसो, बादल!