भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुद्दतों पर मिला जो रुका ही नहीं / कुमार नयन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुद्दतों पर मिला जो रुका ही नहीं
यार ने कुछ कहा कुछ सुना ही नहीं।

सारा किस्सा तो आंखों में ही दर्ज था
क्या करें हम किसी ने पढ़ा ही नहीं।

जाने ख़ारों ने चुप रह के क्या कह दिया
तितलियों ने गुलों को छुआ ही नहीं।

मैंने देखा है ऐसे भी खुद्दार को
जिसने मांगी किसी से दुआ ही नहीं।

कोई दीवाना है या कि मजबूर है
हंस रहा है वो जैसे खफ़ा ही नहीं।

प्यार को कह रहे हैं वो अब भी बुरा
कैसे कह दूँ मिरी कुछ ख़ता ही नहीं।

खून देता रहा मुझको चुपके से जो
कह रहा है मुझे जानता ही नहीं।