भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुनियाँ पिंजड़ेवाली ना, तेरो सतगुरु है बेपारी / कबीर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुनियाँ पिंजड़ेवाली ना, तेरो सतगुरु है बेपारी॥टेक॥
पाँच तत्त का बना है पींजड़ा, तामें रहती मुनियाँ।
उड़िके मुनियाँ डार पर बैठी, झींखन लागी सारी दुनिया॥1॥
अलग डाल पर बैठी मुनियाँ, पिये प्रेम रस बूटी।
क्या करिहैं जमराज तिहारो, नाम कहत तन छूटी॥2॥
मुनियाँ की गति मुनियाँ जानै, और कहै सब झूठी।
कहै कबीर सुनो भाइ साधो, गुरु चरनन की भूखी॥3॥