भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मूर्ख हृदय बन्द कर धड़कना / सिर्गेय येसेनिन / वरयाम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मूर्ख हृदय! बन्द कर धड़कना
हम सबको धोखा दिया है क़िस्‍मत ने ।
निर्धन सिर्फ़ सहानुभूति चाहते हैं,
धड़कना बन्द कर, ओ मूर्ख हृदय !

शाहबलूत की पत्तियों पर
टपक रहा है चन्द्रमा का पीला जादू,
मैं झुक रहा हूँ पर्दे के पीछे,
धड़कना बन्द कर, ओ मूर्ख हृदय !

कभी-कभी हम सब बच्‍चे हो जाते हैं
अक्‍सर हँसते हैं, रो देते हैं
जीवन में ख़ुशियाँ मिली
और ग़म भी मिले तरह-तरह के,
धड़कना बन्द कर, ओ मूर्ख हृदय !

देखे हैं मैंने बहुत सारे देश,
सुख की तलाश रही मुझे हर जगह
जिस नियति की खोज थी
अब नहीं ढूँढूँगा मैं उसे,
धड़कना बन्द कर, ओ मूर्ख हृदय !

पूरा धोखा तो नहीं दिया है ज़िन्दगी ने
नई ताक़त के नशे में झूमेंगे हम ।
ओ हृदय ! कुछ देर तू सो लेता
यहाँ, प्रिया की गोदी में ।
पूरा धोखा तो नहीं दिया है ज़िन्दगी ने ।

सम्भव है हमें भी दिखेगी
हिमनद की तरह बहती नियति ।
वह उसके प्रेम का उत्‍तर
देगी कोयल के गीतों से,
अब धड़कना बन्द कर, ओ मूर्ख हृदय !