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मेरी अना मेरे दुश्मन को ताज़ियाना है / 'असअद' बदायुनी

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मेरी अना मेरे दुश्मन को ताज़ियाना है
इसी चराग़ से रौशन ग़रीब-ख़ाना है

मैं इक तरफ हूँ किसी कुंज-ए-कम-नुमाई में
और एक सम्त जहाँ-दारी-ए-ज़माना है

ये ताइरों की क़तारें किधर को जाती हैं
न कोई दाम बिछा है कहीं न दाना है

अभी नहीं है मुझे मसलहत की धूप का ख़ौफ़
अभी तो सर पे बग़ावत का शामियाना है

मेरी ग़ज़ल में रजज़ की है घन-गरज तो क्या
सुख़न-वरी भी तो कार-ए-सिपाहियाना है