भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी गौरैया / त्रिभवन कौल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी गौरैया बच कर रहियो
यहाँ दरिन्दे आम हैं
ना उनके बेटी ना उनकी बहना
उनका संगी’ काम है
 
पहन मखोटे तरह तरह के
सब को यह भरमाये हैं
मानवी रिश्तों का मोल नहीं
राक्षसों के यहाँ से आयें हैं

मानसिकता है गिरी हुई
चेतना शुन्य लोग यहाँ
बचके रहना ओ री गौरैया
नोचने को तत्पर यहाँ

इन गिद्दों से बच कर रहना
आकाश में मंडराते हैं
देखी जहाँ अकेली गौरैया
झपटा मार ले जाते हैं

छतरी के नीचे कब तक रखूँ मैं
आखिर बाहर निकलना है
लड़ना मरना सीख ले गौरैया
अब तो यही तेरा गहना है

एक गौरैया निर्भय भी थी
जागृत कर, विलीन हो गई
मशाल बन तुम, जलते रहना
जो अपना अस्तित्व बचाना है