भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी दीदी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी दीदी बातें करती,
रहती अक्सर ऊँट पटांग।

छड़ी घुमाकर कहती रहती,
पल में गधा बना दूँगी।
आसमान में गिद्ध बनाकर,
तुमको अभी उड़ा दूँगी।
बात-बात में मारा करती,
मेरे सब कामों में टाँग।

टोपा स्वेटर मेरे पहने,
कर डाले ढीले ढाले।
चित्र बनाये थे जो मैंने,
घिसकर रबर मिटा डाले।
कापी पेन पेंसिल दे दो,
जब तब होती रहती माँग।

फिर भी मेरी दीदी मुझको,
लगती बहुत भली प्यारी।
अम्मा बापू को हम दोनों,
लगते घर की फुलवारी।
लड़ते भिड़ते रहकर भी हम,
रोज बनाते नए-नए स्वाँग।