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मेरे क़दमों में अगर आवारगी होती नहीं / अजय अज्ञात

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मेरे क़दमों में अगर आवारगी होती नहीं
मंज़िले मक़सूद भी हासिल कभी होती नहीं

जिस्मे मखमल को अगर मैंने छुआ होता कभी
ज़िंदगी मेरी यक़ीनन खुरदरी होती नहीं

पी लिया होता अगर मकरंद तेरा, ज़िंदगी
इस तरह क़ाबू से बाहर तिश्नगी होती नहीं

लाज़िमी है पेश करना एक अच्छा शे‘र भी
क़ाफ़िया पैमाई से तो शाइरी होती नहीं

एक शकुनी जैसा जो किरदार न होता ‘अजय’
फिर महाभारत के जैसी त्रासदी होती नहीं