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मेरे जीवन की पढ़ाई हो जाये / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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दिनचर्या तेरी मेरी सेवा हो
कुछ ऐसी कमाई हो जाये।
हे देव तेरा गुणगान मेरे
जीवन की पढ़ाई हो जाये।।

यह जग छलनामय क्षण भंगुर
खिल कर झड़ जाते फूल यहाँ।
अनूकूल स्वजन भी दुर्दिन में
हो जाते हैं प्रतिकूल यहाँ।
मेरे जीवन का सब कर्ता-धर्ता
सच्चा साँई हो जाये-
हे देव तेरा गुणगान 0.................................।।1।।

हे नाथ मदन के घातों से
मेरा उर-भवन हुआ जर्जर।
कैसे इस मलिन कुटिल उर में
तुम बस सकते सच्चे गुरूवर।
तेरे निवास के योग्य हृदय की
नाथ सफाई हो जाये-
हे देव तेरा गुणगान 0.................................।।2।।

वैसे तो लाख अभावों में
रोया, चिल्लाया, सिर पटका।
पर हे प्राणेश अभाव तुम्हारा
कभीं न इस उर में खटका।
अपने प्रभु से बिछुड़ा कब से,
यह सोच रूलाई हो जाये-
हे देव तेरा गुणगान 0.................................।।3।।

विलखना सिखा दो विश्वनाथ
अपने वियोग की पीड़ा में।
मत भटकाओ भगवान हमें
जग की छलनामय क्रीड़ा में।
‘पंकिल’ उर में फिर से भोले
बचपन की अवाई हो जाये-
हे देव तेरा गुणगान 0.................................।।4।।