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मेहदी-1 / नज़ीर अकबराबादी

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तुमने हाथों में सनम जब से लगाई मेंहदी।
रंग में हुस्न के फूली न समाई मेंहदी॥1॥
किस तरह देखके दिल पर न क़यामत गुज़रे।
एक तो हाथ ग़ज़ब जिस पै रचाई मेंहदी॥2॥
दिल धड़कता है मेरा आज खु़दा खैर करे।
देख करती है यह किस किससे लड़ाई मेंहदी॥3॥
दिल तड़फता है मेरा जिससे कि मछली की तरह।
इस तड़ाके की वह चंचल ने लगाई मेंहदी॥4॥
हुस्न मेंहदी ने दिया आपके हाथों को बड़ा।
ऐसे जब हाथ थे जिस हक़ ने बनाई मेंहदी॥5॥
क्या खता हमसे हुई थी कि हमें देखकर आह।
तुमने ऐ जान दुपट्टा में छिपाई मेंहदी॥6॥
ग़श हुए, लोट गए, कट गए, बेताब हुए।
उस परी ने हमें जब आके दिखाई मेंहदी॥7॥
देखे जिस दिन से वह मेंहदी भरे हाथ उसके ”नज़ीर“।
फिर किसी की हमें उस दिन से न भाई मेंहदी॥8॥

शब्दार्थ
<references/>