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मैं इतनी बार मर चुकी हूँ / बेल्ला अख़्मअदूलिना / अनिल जनविजय

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मैं इतनी बार मर चुकी हूँ
या सोच रही थी कि मर रही हूँ
कि मैं एक पापहीन पत्ती को सूँघती हूँ
जब लिखती हूँ शब्द उस पर

मुझे जीवन ने सताया और ज़रूरतों ने
सुबह-सवेरे डरती थी कि सब फिर से शुरू करना होगा
लेकिन जॉर्जिया ने मुझे हमेशा
अपने पास बुलाया और मेरी मदद की

किसी अज्ञात कारण से
आँखें भर-भर आती थीं उस अद्भुत्त प्रेम से
ओह, कैसे भला आप, कब ये जानेंगे
कैसे वह प्यारी भूमि मुझे प्रेम करती रही

ओ तिफ़्लिस, मुझे नहीं पता, मैं यह नहीं जानती
कितने कठोर हैं मेरे माता-पिता
जिन्होंने फेंक दिया मुझे तेरी देहरी पर
बड़े सिर वाली परित्यक्त शिशु हूँ मैं

तिफ़्लिस तुमने मुझे कभी नहीं बताया
और कभी मैंने तुमसे यह पूछा भी नहीं :
कि क्यों तुमने मुझपर उपहारों की वर्षा की
और क्यों मुझसे कहते रहे शुक्रिया ?

आने वाले दिनों से और कोहरे से
मैं कैसा भी जीवन क्यों न बना लूँ
लेकिन तुम्हारे प्रेम का प्रतिदान देने के लिए
कुछ भी क्यों न करूँ, वो बेकार और बहुत थोड़ा होगा।

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
         Белла Ахмадулина

Я столько раз была мертва
иль думала, что умираю,
что я безгрешный лист мараю,
когда пишу на нем слова.

Меня терзали жизнь, нужда,
страх поутру, что все сначала.
Но Грузия меня всегда
звала к себе и выручала.

До чудных слез любви в зрачках
и по причине неизвестной,
о, как, когда б вы знали, - как
меня любил тот край прелестный.

Тифлис, не знаю, невдомек -
каким родителем суровым
я брошена на твой порог
подкидышем большеголовым?

Тифлис, ты мне не объяснял
и я ни разу не спросила:
за что дарами осыпал
и мне же говорил "спасибо"?

Какую жизнь ни сотворю
из дней грядущих, из тумана, -
чтоб отслужить любовь твою,
все будет тщетно или мало...