भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं और सवेरा / माया मृग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अभी रहने दो
रात बहुत बाकी है,
सड़कें भी बहुत खाली !
देखना है -
कदम ही थक जाते है
या कि
रात ही धुंधवा कर
दम तोड़ देती है।
जो भी हो
ये तय है कि मैं
जब भी घर पहुँचूंगा
सवेरा मेरे स्वागत को
चौखट पे होगा।