भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं कभी मौत पर नहीं हँसता / हावियर हिरॉद / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कभी मौत पर नहीं हँसता

बात बस, इतनी-सी है
कि मुझे डर नहीं लगता
पेड़ों और पक्षियों के बीच मरने से

मैं कभी मौत पर नहीं हँसता
लेकिन कभी-कभी मुझे प्यास लगती है
और मैं थोड़ा जीना चाहता हूँ
कभी-कभी जब मैं प्यासा होता हूँ
मैं उत्सुक हो उठता हूँ
और रोज़-रोज़ पूछने लगता हूँ सवाल
और हमेशा की तरह मुझे कोई जवाब नहीं मिलता
मेरे मन में उतर आती है एक काली और गहरी हँसी

मैं पहले ही बता चुका हूँ
कि मैं कभी मौत पर नहीं हँसता
पर उसके उदास चेहरे
और उसकी उदास पोशाक से
मैं उसे पहचानता हूँ

मैं मौत पर कभी नहीं नहीं हँसता

मौत ! मौत !
मैं जानता हूँ कि तुम्हारा घर सफ़ेद है
और तुम्हारी पोशाक भी सफ़ेद
मैं मौत की नमी को जानता हूँ
और जानता हूँ उसकी घुटन

बेशक, अभी तक
मौत नहीं पहुँच पाई है मेरे पास
और आप पूछ सकते हैं कि मैं
उसके बारे में क्या जानता हूँ?

सचमुच, मुझे कुछ नहीं पता
मैं कुछ नही जानता
पर मुझे मालूम है कि वह आएगी
वह इन्तज़ार कर रही है मेरा

मैं भी उसका इन्तज़ार करूँगा कहीं खड़े होकर
या कुछ टूँगते हुए
 मैं उस पर डालूँगा एक सहज नज़र
डरूँगा नहीं में
क्योंकि मैं कभी हँसा नहीं उसकी पोशाक पर
मैं उसके साथ चला जाऊँगा
अकेले, अकेले

मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब मूल स्पानी में यह कविता पढ़िए

Yo no me río de la muerte
 
Yo nunca me río
de la muerte.
Simplemente
sucede que
no tengo
miedo
de
morir
entre
pájaros y arboles

Yo no me río de la muerte.
Pero a veces tengo sed
y pido un poco de vida,
a veces tengo sed y pregunto
diariamente, y como siempre
sucede que no hallo respuestas
sino una carcajada profunda
y negra. Ya lo dije, nunca
suelo reír de la muerte,
pero sí conozco su blanco
rostro, su tétrica vestimenta.

Yo no me río de la muerte.
Sin embargo, conozco su
blanca casa, conozco su
blanca vestimenta, conozco
su humedad y su silencio.

Claro está, la muerte no
me ha visitado todavía,
y Uds. preguntarán: ¿qué
conoces? No conozco nada.
Es cierto también eso.
Empero, sé que al llegar
ella yo estaré esperando,
yo estaré esperando de pie
o tal vez desayunando.
La miraré blandamente
(no se vaya a asustar)
y como jamás he reído
de su túnica, la acompañaré,
solitario y solitario.