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मैं जीवन हूँ / शब्द के संचरण में / रामस्वरूप 'सिन्दूर'

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वह नहीं, कि मैं जो बाहर हूँ,
वह नहीं, कि जो मैं भीतर हूँ,
फिर क्या हूँ मैं, इसका कोई संज्ञान नहीं!
कल्पना नहीं अनुमान नहीं!

शून्य में एक अनुगुन्जन-सा रहता हूँ मैं,
सूरज में मानसरोवर-सा बहता हूँ मैं
मैं तन से, मन का अन्तर हूँ,
अक्षत यौवन, मन्वन्तर हूँ
संसृति में मुझ-जैसा कोई गतिमान नहीं!
मेरा, कोई प्रतिमान नहीं!

सरसिज में बन्दी, एक स्वप्न जीता हूँ मैं,
अश्रु से उतारी-गयी सुरा पिता हूँ मैं
मैं एक लहर का, सागर हूँ,
शिखरों पर घाटी का स्वर हूँ
मुझ पर चल पता विधि का एक विधान नहीं!
मैं, मात्र एक म्रियमाण नहीं!

भोग से, योग में गये मिलन का क्षण हूँ मैं,
मधु से, माधव हो गये सृजन का क्षण हूँ मैं
मैं क्षर से जन्मा, अक्षर हूँ,
मेरे पथ में, इति का कोई व्यवधान नहीं!
मैं जीवन हूँ निर्वाण नहीं!