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मैं तुमसे दूर, बहुत दूर चला जाऊँगा / बलबीर सिंह 'रंग'

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मैं तुमसे दूर, बहुत दूर चला जाऊँगा।

खेत ख़लिहानों से, बस्ती से बियावानों से
इस नए दौर के इन्सानों से, हैवानों से
हो के मजबूर बहुत दूर चला जाऊँगा।
मैं तुमसे दूर...

कोई मंजिल न कोई रास्ता अनजान सफर
कोई हमराज न हमदम न कोई चारागर
ग़म से भरपूर बहुत दूर चला जाऊँगा।
मैं तुमसे दूर...

लेकिन एक बात है दुनिया के ग़म गु़सारों को
अन्दलीबों को खि़जाँ से लुटी बहारों को
सौंप कर नूर बहुत दूर चला जाऊँगा।
मैं तुमसे दूर...

गै़र मुमकिन है कभी मेरी याद आ जाए
भरी महफ़िल में तनहाई रंग ला जाए
मैं बेक़सूर बहुत दूरचला जाऊँगा।

मैं तुमसे दूर बहुत दूर चला जाऊँगा।
गम से भरपूर बड़ी दूर चला जाऊँगा।