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मैं तुम्हारा नाम लूँगी जेसिण्डा / ज्योत्स्ना मिश्रा

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तुम्हारा नाम लूँगी उसी तरह
जैसे सहरा में हवाएँ लेती हैं
किसी फूल का नाम
तुम्हारा नाम लूँगी
किसी चिड़िया के नाम की तरह
जो डुला देती है
अपने नन्हें परों से
दोनो ध्रुव
मैं तुम्हारा नाम लूँगी
जैसे लिया था गान्धी ने वो नाम,
हे राम !

तुम्हारे नाम में वो सिफ़त है
कि जब लेगी कोई फ़िलीस्तीनी या इज़राइली औरत
यह नाम
तो दो पल को भुला देगी घर से निकले प्रिय की फ़िक्र
मैं तुम्हारा नाम लूँगी, अपने बच्चों के कानों में
लोरी की तरह,
यक़ीन है वो.बेहद पुरसुक़ून नींद सोएँगे

लो जमा करती हूँ
घृणा ,अहंकार, पूर्वाग्रह
अविश्वास के हथियार !
ज़ब्त कर दो इन्हें

तुम ठीक कहती हो
मैं हमलावर का नाम नहीं लूँगी
न किसी धर्म का नाम
न समुदाय का
न किसी जन्नत, स्वर्ग या हेवेन का नाम

इस दुनिया को जीने लायक रखने को
तुम्हारा नाम काफी है — जेसिण्डा एरडर्न !