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मैं बढ़ता रहा / नामदेव ढसाल

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जब सूरज
बुझने लगा रात की बाँहों में
तब मैं पैदा हुआ फुटपाथ पर

चीथड़ों में पला
और अनाथ हो चला

मुझे जन्म देने वाली माँ
चली गई आकाश के बाप की ओर

फुटपाथ के भूतों की यातनाओं से ऊबकर
धोती का अन्धेरा धोने के लिए

और किसी फ्यूज आदमी की तरह
मैं बढ़ता रहा
रास्ते की गन्दगी पर

पाँच पैसा दे दो
पाँच गाली ले लो
कहता हुआ
दरगाह के रास्ते पर ।

मूल मराठी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय