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मैं मोह की नशीली भूल था कभी, मगर / बलबीर सिंह 'रंग'

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मैं मोह की नशीली भूल था कभी, मगर
अब तो किसी के प्यार की चुभीली याद हैं।
किसी की भूली याद हूँ।

वह दर्द हूँ जो व्यर्थ के उपचार से हो दूर,
वह सत्य हूँ जो स्वप्न में संसार से हो दूर,
जीवन-सरित में घूमता अभागा भंवर हूँ,
जो धार से हो पास पर कगार से हो दूर,
मैं देवता की दृष्टि से वंचित प्रसाद हूँ।
फिर भी किसी के प्यार की चुभीली याद हूँ।
किसी की भूली याद हूँ।

पूरी न हुई मेरी कभी राम-कहानी,
तूफानों में भी झुक न सकी मेरी जवानी,
हस्ती मिटा के अपनी मैं मस्ती को पा सका,
पर मौत से भी मिट न सकी मेरी निशानी,
अम्बर में गूँजता हुआ अन्तर्निनाद हूँ।
फिर भी किसी के प्यार की चुभीली याद हूँ।
किसी की भूली याद हूँ।

पहले की तरह अब नहीं अरमान मचलते,
दर्दीले कंठ से न करुण-गान निकलते,
मुझको क्या सभी को मानना पड़ेगा यह,
आँखों के खारे जल से न पाषाण पिघलते,
मजबूरी भरे दिल की अधूरी मुराद हूँ।
फिर भी किसी के प्यार की चुभीली याद हूँ।
किसी की भूली याद हूँ।