भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं / मृत्युंजय कुमार सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं - एक दीया
आस्था औ' विश्वास का तेल
भावना की बाती
चेतना की आग
सबका मेल
जलाती है मेरे जीवन की शिखा;

फिर चुकता जाता है तेल
जलती जाती है बाती
धीमी पड़ती है शिखा
और शेष बचता हूँ
मैं - एक दीया।