भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मॉस्को की लड़की / देवेश पथ सारिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मॉस्को में एक लड़की से
मेट्रो रेल की आपाधापी में
छू गया था मेरा पैर

जैसी कि आदत डाली गयी है
‘लड़कियों से पैर नही छुआते’
तत्क्षण, उसके साथ से अपनी हथेली छुआकर
माथे से लगा ली थी मैंने

यह बस अपने आप हुआ,
एक आदत के तहत
सोच सकने से भी पहले

बहरहाल, अब सोचता हूँ
उसके देश में क्या ऐसा करता होगा कोई
वह मुझे अजीब समझती होगी
या शायद अवसरवादी बदनीयत
ना उसे मेरी भाषा आती थी
ना ही मैं रूसी जानता था
तो हम दोनो मौन रहे

बस इतना याद है
वह मुझ पर हँसी नही थी
और अपना स्टेशन आने तक
देखती रही थी मुझे