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मोरा बाँके दुलहवा चलल आवे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मोरा बाँके दुलहवा चलल<ref>चला आ रहा है</ref> आवे।
बिरदावन से गभरूआ<ref>वह स्वस्थ नवयुवक, जिसकी अभी मसें भींग रही हों</ref> चलल आवे॥1॥
जब गभरू आयल हमर नगरिया हे।
गहगह बाजन बजत आवे॥2॥
जब गभरू आयल हमर मँडउवा<ref>मंडव पर</ref> हे।
आजन बाजन गूंजन लागे॥3॥
जब गभरू आयल हमरो कोहबरिया हे।
बेला फूल मौरिया<ref>मौर</ref> धमकन लागे॥4॥
काहाँ बितयलऽ<ref>तुमने। व्यतीत किया है</ref> गभरू आजु दुपहरिया हे।
कइसे कइसे गभरू चलल आवे॥5॥
हम तो बितीलूँ<ref>हमने। बिताया है, व्यतीत किया है</ref> बाघे<ref>बाग में</ref> दुपहरिया हे।
तोहरे<ref>तुम्हारे</ref> लोभे हम तो चलल आऊँ<ref>आ रहा हूँ</ref>॥6॥
चलते चलते मोरा गोड़<ref>पैर</ref> पिरायल<ref>दर्द कर रहा है</ref> हे।
हम तोहर बनल गुलाम आऊँ॥7॥

शब्दार्थ
<references/>