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मौत का तरल दूत / साधना जोशी

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मौत के तरल दूत ने,
विपति का मंजर फैलाया ।
उसी को,
आज देखा है उन आंखों ने ।
सुकून से सोये थे जो,
दिन भर की भाग दौड़ से ।
उनको क्या खबर थी,
मौत भी दौड़ायेगी रात भर ।

गंगा की षीतल लहरों में,
काल का ताण्डव दिखेगा ।
हा, हा कार मच जायेगा,
षान्त गांवों की वादियों में ।
अपने लिये सजाये थे जो,
खेत खलियान प्रेम से ।
वही खण्डहर बनकर,
जन-जन को रूलायेगें।

जो मासूम सो गये अपनी,
माँ के सीने से लिफ्ट कर ।
अँधियारे में माँ का,
ऑंचल खोज रहे हैं ।

सजी थी जो वादियाँ दुल्हन के जैसे,
कट-कट के आज विखर सी गयी है ।
जो किताबें और डिग्रियाँ संजो कर रखी थी,
न जाने किस लहर पर सवार हो गयी है ।

मौत का तरल दूत,
मिटा लेग गया ।
उत्तरकाषी की सुन्दरता को,
कभी बाढ़ और भूकम्प से ।
वरूणावत की करूण गाथा ने,
डराया रूलाया सभी को ।

आयी है विपत्तियॉं न जाने अनेकों,
उत्तरकाषी के दामन उड़ाने चली है ।
संभलेगी धरती हर दुःखों से लड़कर,
दामन खुषी से लहरा उठेगा ।
बढ़ो तुम आगे,
धैर्य को हथियार बनाकर ।
इस धरती को फिर से,
हम सबको सजाना है।
अस्तित्व एक दूजे के लिए
स्त्री और पुरुश,
दिया और बाती है ।
एक दूजे के लिए,
पुरुश अगर तेल युक्त दिया है ।
तो स्त्री बाती है
जो जलकर रोषनी फैलाती है ।

चाँद और सूरज के समान,
अस्तित्व है दोनों का ।
सूरज में गर्मी है ता,े
चाँद में मीठी चाँदनी ।

धरती और अम्बर सा,
साथ है स्त्री और पुरुश का ।
अम्बर आवरण है धरा का,
धरा आधार है अम्बर की ।

न केाई छोटा न बड़ा,
पुरुश ताज है तो ।
स्त्री सिर है,
जिस पर ताज सजता है ।

गृहस्थ के नैया के,
दोनों खेवया हैं ।
गाड़ी के दो पहिए है,
जीवन को चलाने के लिए ।
इसलिए दोनों के सम,
अस्तित्व लिये हैं ।

वैचारिक समानता ना भी मिले तो,
किन्तु सर्मपण एक दूजे का ।
बाँधे रखता है एक दूसरे को,
इसी से गृहस्थ की बगिया महकती है,
खिलते हैं फुल बहारों को साथ लिए ।

तराजू के दो पल्ड़ों जैसे,
भार कभी कम तो कभी ज्यादा,
भी हो सकता है ।
रखना धैर्या ओर दृढता कोे साथ,
जलानी है गृहस्थ की ज्योती ।
दिया और बाती की तरह,
रोषन करना है जहाँ ।
अपना और अपनों का ।
माँ की पुकार

सीचती गई मैं जिसको,
उम्र के हर पड़ाव में ।
अपने खून से,
भावों से और ख्वाबों से ।

अंकुर से फूल बने तुम,
तुमको वृक्ष बनाने का ।
हर पल प्रयत्न किया मैने,
जीवन के हर कश्ट को,
तुम्हारे लिए ही भुला दिया ।

आज तुम वृक्ष बन गये हो,
दुनिया के लिए ।
मुझसे बेगाने बनकर,
तुम ऊँची दुनियां की बहारे चूमते हो ।
उनके संग झूमते हो ।